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शुक्रवार, 9 मार्च 2018

मौर्योत्तर काल ईरानी/ फारसी/ अखामनी आक्रमण यूनानी आक्रमण इंडो ग्रीक आक्रमण/ यवन आक्रमण/ बैक्ट्रियन/ पार्थिया आक्रमण शक आक्रमण नहपान रुद्रदामन उत्तरी क्षत्रप पश्चिमी क्षत्रप


मौर्योत्तर काल 184  ईसा पूर्व से 275  ईसवी तक-
मौर्य साम्राज्य के अंत के साथ ही भारतीय इतिहास की राजनीतिक एकता कुछ समय के लिए खंडित हो गई। अब हिन्दुकुश से लेकर कर्नाटक एवं बंगालतक एक ही राजवंश का आधिपत्य नहीं रहा। देश के उत्तर पश्चिमी मार्गों से कई विदेशी आक्रांताओं ने आकर अनेक भागों में अपने अपने राज्य स्थापित कर लिए। दक्षिण में स्थानीय शासक वंश स्वतंत्र हो उठे। कुछ समय के लिए मध्य प्रदेश का सिंधु घाटी एवं गोदावरी क्षेत्र से सम्बन्ध टूट गया और मगध के वैभव का स्थान साकलविदिशा, प्रतिष्ठान, आदि कई नगरों ने ले लिया।
इस काल में विदेशी आक्रमणकारियों ने भारत पर आक्रमण किए जो  निम्न थे
1.  ईरानी/ फारसी/ अखामनी आक्रमण-  मौर्योत्तर काल से पूर्व तथा भारत पर पहला विदेशी आक्रमण वीरानियों ने किया.
 भारत पर आक्रमण करने वाला प्रथम विदेशी शासक सहायक द्वितीय था जिसने लगभग 520 ईसापूर्व भारत पर आक्रमण किया। भारत पर दूसरा आक्रमण डेरियस प्रथम/ दारा प्रथम ने किया डेरियस प्रथम ने पहली बार भारत के उत्तर पश्चिम क्षेत्र को जीत कर के ईरानी साम्राज्य का भाग बनाया। भारत पर ईरानी आक्रमण का महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा।
1 ईरानी आक्रमण से भारत में अरमाईक लिपि और खरोष्ठी लिपि का आगमन हुआ।
2 ईरानी आक्रमण से भारत में सिक्का निर्माण शैली में परिवर्तन आया एवं सिक्कों पर राजा के चित्रों का प्रचलन हुआ। वीरानियों ने भारत में डेंरीक ( सोने का सिक्का) व सिगलोई ( चांदी का सिक्का)  नामक से चलाएं।
 3 व्यापार वाणिज्य का विकास हुआ।

2.  यूनानी आक्रमण-  भारत पर दूसरा विदेशी आक्रमण यूनानियों ने किया जिसमें सिकंदर तथा सेल्यूकस के आक्रमण प्रमुख है।
 सिकंदर-
 सिकंदर यूनान के मकदूनिया प्रांत का निवासी था। एवं उसका उद्देश्य विश्व विजेता बना था। सिकंदर ने भारत पर 326 ईसापूर्व में आक्रमण किया। इस समय भारत का शासक ( मगध) धनानंद।  सिकंदर के आक्रमण के समय तक्षशिला के शासक आंभी ने सिकंदर का साथ दिया। जबकि झेलम क्षेत्र का शासक पोरस ने सिकंदर का विरोध किया एवं दोनों के मध्य  झेलम( विस्तता) का युद्ध हुआ। जिसमें  राजा पोरस की पराजय हुई।  जब  राजा पोरस को बंदी बनाकर सिकंदर के सामने पेश किया गया तो सिकंदर ने पोरस से पूछा आपके साथ क्या किया जाए।  तब राजा पोरस ने कहां एक राजा दूसरे राजा के साथ जो करता है वही किया जाए। राजा पोरस की वीरता से प्रसन्न होकर सिकंदर ने  राजा पोरस का राज्य वापस लौटा दिया।
 सिकंदर की सेना ने भारत में व्यास नदी से आगे बढ़ने से इंकार कर दिया।  व्यास नदी भारत में सिकंदर के साम्राज्य की सीमा थी 365 में बेबी लोनिया में सिकंदर की मृत्यु हो गई।
 नोट- उपरोक्त दोनों आक्रमण मौर्योत्तर काल से पूर्व में हुए थे। मौर्योत्तर काल में भारत पर किए गए आक्रमण निम्न है
1.  इंडो ग्रीक आक्रमण/ यवन आक्रमण/  बैक्ट्रियन/ पार्थिया आक्रमण-
 मौर्योत्तर काल में भारत पर प्रथम विदेशी आक्रमण इंडो ग्रीक  शासकों ने किया।
प्रथम इंडो ग्रीक आक्रमण डेमेट्रियस प्रथम के द्वारा 183 ईसा पूर्व में किया गया। इस समय मगध का शासक पुष्यमित्र शुंग था।
 डेमेट्रियस प्रथम ने साकल( सियालकोट) को अपनी राजधानी बनाया। यह प्रथम ग्रीक शासक था जिसने द्विभाषी  सिक्के चलाए।
डेमेट्रियस प्रथम वंश के प्रसिद्ध शासक मिनांडर हुआ। और इसकी राजधानी साकल थी। मिनांडर के बारे में जानकारी मिलिंदपन्हो से मिलती है। जिसकी रचना बौद्ध भिक्षु ना करने की
 दूसरा इंडो ग्रीक आक्रमण यूक्रेटाइटिस ने किया  एवं इसने तक्षशिला को अपनी राजधानी बनाया।
 भारत में यूक्रेटाइटिस  वंश का प्रसिद्ध शासक  एंटियालकीड़स जिसने अपने राजदूत हेलिओडोरस को शुंग शासक भाग भाद्र के दरबार में भेजा। एवं हेलिओडोरस ने विदिशा/ बेसनगर मे प्रसिद्ध गरुड़ स्तंभ लेख खुदवाया। जो भारत में भागवत धर्म के प्रचार प्रसार की जानकारी देता है।  एवं हेलियोडोरस ने भागवत धर्म को स्वीकार कर लिया।
2.  शक आक्रमण-
 भारत पर इंडो ग्रीक शासकों के पश्चात शकों का आक्रमण हुआ।  शक मध्य एशिया के निवासी थे। इन्हें सीथियन भी कहा जाता है। भारत में शक राजाओं को क्षेत्र कहा जाता था। भारत में  शकों  की दो शाखाएं स्थापित हुई-  उत्तरी क्षत्रप और पश्चिमी क्षत्रप।
 उत्तरी क्षत्रप के तक्षशिला एवं मथुरा दो प्रमुख केंद्र थे जिसमें तक्षशिला का शासक माउस तथा मथुरा का शासक राजूल/ ताजूल थे।
         मथुरा के  शकों को एक प्रसिद्ध भारतीय शासक ने पराजित किया और इसी उपलक्ष में उसने विक्रमादित्य की उपाधि धारण की एवं 57  ईसा पूर्व विक्रम संवत चलाया। विक्रमादित्य की उपाधि धारण करने वाला प्रथम शासक मालवा का था जिसके नाम का उल्लेख नहीं मिलता है।

 पश्चिमी क्षत्रप शाखा का प्रथम केंद्र नासिक तथा उज्जैन/ मालवा था।
 शिक्षा का प्रमुख शासक भूमक,   नहपान हुए, तथा उज्जैन मालवा शाखा के प्रमुख शासक चष्टन एवं रुद्रदामन हुए।
 नहपान-
 यह   शकों की पश्चिमी क्षत्रप शाखा का एक प्रसिद्ध शासक था जिसने नाशिक को अपनी राजधानी बनाया। इसको सातवाहन शासक गौतमीपुत्र सातकर्णि ने पराजित किया एवं इस के उपलक्ष में नासिक में चांदी के सिक्के चलाए।
 नोट जोगलथम्बी नामक स्थल  से नहपान के चांदी के सिक्कों का ढेर मिला जो शक कालीन सर्वाधिक सिक्के हैं।
 रुद्रदामन 130 से 150  0-
 यह शकों का महान शासक था, जो उज्जैन के सहरात राजवंश से संबंधित था। रुद्रदामन की उपलब्धियों की जानकारी उसके जूनागढ़ अभिलेख (150  0) से मिलती है। यह संस्कृत भाषा में लिखा गया भारत का प्रथम अभिलेख। जिसमें सौराष्ट्र प्रांत की प्रशासनिक व्यवस्था एवं सुदर्शन झील की जानकारी मिलती है। किस अभिलेख में प्राचीन भारत के 4 शासकों एवं चार राज्यपालों का एक साथ वर्णन मिलता है।

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