महाजनपदों
प्रारंम्भिक भारतीय इतिहास में छठी शताब्दी ईसा पूर्व को
परिवर्तनकारी काल के रूप में महत्त्वपूर्ण माना जाता है। यह काल प्राय:
प्रारंम्भिक राज्यों, लोहे के
बढ़ते प्रयोग और सिक्कों के विकास के के लिए जाना जाता है। इसी समय में बौद्ध और जैन सहित अनेक दार्शनिक विचारधाराओं का विकास हुआ। बौद्ध और जैन धर्म के
प्रारंम्भिक ग्रंथों में जनपद नाम के सोलह राज्यों का विवरण मिलता है। इनमे वज्जि, मगध, कोशल, कुरु, पांचाल, गांधार और अवन्ति महाजनपद महत्त्वपूर्ण महाजनपदों के रूप
में जाने जाते हैं। अधिकांशतः महाजनपदों पर राजा का ही शासन रहता था परन्तु गण और
संघ नाम से प्रसिद्ध राज्यों में लोगों का समूह शासन करता था, इस समूह का हर व्यक्ति राजा कहलाता था। भगवान महावीर और भगवान बुद्ध इन्हीं
गणों से संबन्धित थे। वज्जि संघ की ही तरह कुछ राज्यों में ज़मीन सहित आर्थिक
स्रोतों पर राजा और गण सामूहिक नियंत्रण रखते थे।
राजधानी
प्रत्येक महाजनपद की एक राजधानी थी जिसे क़िले
से घेरा दिया जाता था। क़िलेबंद राजधानी की देखभाल, सेना और
नौकरशाही के लिए भारी धन की ज़रूरत होती थी। शासक किसानों, व्यापारियों
और शिल्पकारों से कर तथा भेंट वसूल करते थे। संपत्ति जुटाने का एक उपाय पड़ोसी
राज्यों पर आक्रमण कर धन एकत्र करना भी था। कुछ राज्य अपनी स्थायी सेनाएँ और
नौकरशाही तंत्र भी रखते थे और कुछ राज्य सहायक-सेना पर निर्भर करते थे जिन्हें कृषक वर्ग
से नियुक्त किया जाता था।
सोलह महाजनपद
भारत के सोलह महाजनपदों का उल्लेख ईसा पूर्व छठी शताब्दी से भी पहले का है। ये
महाजनपद थे-
कुरु-जनपद
इसमें आधुनिक हरियाणा तथा दिल्ली का यमुना नदी के पश्चिम वाला अंश शामिल था। इसकी राजधानी आधुनिक दिल्ली (इन्द्रप्रस्थ)
थी। प्रसिद्ध राजा कुरु के नाम पर ही इसका यह नाम पड़ा था।
पांचाल- बरेली, बदायूं और फ़र्रुख़ाबाद; राजधानी अहिच्छत्र तथा कांपिल्य।
शूरसेन- मथुरा के आसपास का क्षेत्र; राजधानी मथुरा।
वत्स – इलाहाबाद और उसके आसपास; राजधानी कौशांबी।
कोशल - अवध; राजधानी साकेत और श्रावस्ती।
मल्ल – ज़िला
देवरिया;
राजधानी कुशीनगर और पावा (आधुनिक पडरौना)
काशी- वाराणसी; राजधानी वाराणसी।
अंग - भागलपुर; राजधानी चंपा।
मगध – दक्षिण बिहार, राजधानी गिरिव्रज (आधुनिक राजगृह)।
वृज्जि – ज़िला दरभंगा और मुजफ्फरपुर; राजधानी मिथिला, जनकपुरी और वैशाली।
चेदि - बुंदेलखंड; राजधानी शुक्तिमती (वर्तमान बांदा के
पास)।
मत्स्य - जयपुर; राजधानी विराट
नगर।
अश्मक – गोदावरी घाटी; राजधानी पांडन्य।
अवंति - मालवा; राजधानी उज्जयिनी।
गांधार- पाकिस्तान स्थित पश्चिमोत्तर क्षेत्र; राजधानी तक्षशिला।
कंबोज – कदाचित आधुनिक अफ़ग़ानिस्तान; राजधानी राजापुर।
इनमें से क्रम संख्या 1 से 7 तक तथा संख्या 11,ये आठ
जनपद अकेले उत्तर प्रदेश में स्थित थे। काशी, कोशल और वत्स की सर्वाधिक
ख्याति थी।
पांचाल
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बरेली, बदायूँ और फर्रूख़ाबाद ज़िलों से परिवृत प्रदेश
का प्राचीन नाम है। यह कानपुर से वाराणसी के बीच के गंगा के
मैदान में फैला हुआ था। इसकी भी दो शाखाएँ थीं-
पहली शाखा उत्तर पांचाल की राजधानी अहिच्छत्र थी तथा,
दूसरी शाखा दक्षिण पांचाल की
राजधानी कांपिल्य थी।
पांडवों की पत्नी, द्रौपदी को
पंचाल की राजकुमारी होने के कारण पांचाली भी कहा गया।
शूरसेन महाजनपद
शूरसेन महाजनपद उत्तरी-भारत का प्रसिद्ध जनपद था जिसकी राजधानी मथुरा में थी। इस प्रदेश का नाम संभवत: मधुरापुरी (मथुरा) के शासक, लवणासुर के वधोपरान्त, शत्रुघ्न ने अपने पुत्र शूरसेन के नाम पर रखा था। शूरसेन जनपद, मथुरा मंडल अथवा ब्रजमंडल का यह नाम कैसे और किस के कारण पड़ा? यह निश्चित
नहीं है। बौद्ध ग्रंथ अंगुत्तरनिकाय के अनुसार कुल सोलह 16 महाजनपद थे - अवन्ति, अश्मक या अस्सक, अंग, कम्बोज,
काशी, कुरु, कौशल, गांधार, चेदि, वज्जि या वृजि, वत्स या
वंश , पांचाल, मगध, मत्स्य या मच्छ, मल्ल,
सुरसेन या शूरसेन । डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल का मत है कि लगभग एक
सहस्त्र ईस्वी पूर्व से पाँच सौ ईस्वी तक के युग को भारतीय इतिहास में जनपद या
महाजनपद-युग कहा जाता है । कुछ इतिहासकारों के मतानुसार यह एक क़बीला था जिसने ईसा
पूर्व 600-700 के आस-पास ब्रज पर अपना अधिकार कर लिया था और स्थानीय संस्कारों से मेल बढ़ने के लिए कृष्ण पूजा शुरू कर दी।
कौशल / कोसल / कोशल महाजनपद
उत्तरी भारत का प्रसिद्ध जनपद
जिसकी राजधानी विश्वविश्रुत नगरी अयोध्या थी। उत्तर प्रदेश के
फैजाबाद ज़िला, गोंडा और बहराइच के क्षेत्र शामिल थे। वाल्मीकि रामायण में इसका उल्लेख है:
कोसलो नाम मुदित: स्फीतो जनपदो महान। निविष्ट: सरयूतीरे प्रभूत धनधान्यवान्
कोसलो नाम मुदित: स्फीतो जनपदो महान। निविष्ट: सरयूतीरे प्रभूत धनधान्यवान्
मल्ल जनपद
यह भी एक गणसंघ था और पूर्वी उत्तर प्रदेश के इलाके इसके क्षेत्र थे। मल्ल
देश का सर्वप्रथम निश्चित उल्लेख शायद वाल्मीकि रामायण में इस प्रकार है कि राम चन्द्र जी ने लक्ष्मण-पुत्र चंद्रकेतु के लिए मल्ल देश की भूमि में
चंद्रकान्ता नामक पुरी बसाई जो स्वर्ग के समान दिव्य थी।
काशी
पौराणिक 16 महाजनपदों में से एक वाराणसी का दूसरा नाम ‘काशी’
प्राचीन काल में एक जनपद के रूप में प्रख्यात था और वाराणसी उसकी
राजधानी थी।
इसकी पुष्टि पाँचवीं शताब्दी में भारत आने वाले चीनी यात्री फ़ाह्यान के यात्रा विवरण से भी होती है।
हरिवंशपुराण में उल्लेख आया है कि ‘काशी’ को
बसाने वाले पुरुरवा के वंशज
राजा ‘काश’ थे। अत: उनके वंशज ‘काशि’ कहलाए। संभव
है इसके आधार पर ही इस जनपद का नाम ‘काशी’ पड़ा हो।
काशी नामकरण से संबद्ध एक पौराणिक मिथक भी उपलब्ध है। उल्लेख है कि विष्णु ने पार्वती के मुक्तामय कुंडल गिर जाने से इस क्षेत्र को मुक्त क्षेत्र की संज्ञा दी
और इसकी अकथनीय परम ज्योति के कारण तीर्थ का नामकरण काशी किया।
अंग देश या महाजनपद
वर्तमान के बिहार के मुंगेर और भागलपुर ज़िले इसमें आते थे। महाजनपद युग में अंग महाजनपद की राजधानी चंपा थी।
अंग देश का सर्वप्रथम उल्लेख अथर्ववेद में है-
मगध
बौद्ध काल तथा परवर्तीकाल में उत्तरी भारत का सबसे अधिक शक्तिशाली जनपद था। इसकी
स्थिति स्थूल रूप से दक्षिण बिहार के प्रदेश में थी। आधुनिक पटना तथा गया ज़िला इसमें शामिल थे । इसकी
राजधानी गिरिव्रज थी । भगवान बुद्ध के पूर्व बृहद्रथ तथा जरासंध यहाँ के
प्रतिष्ठित राजा थे । अभी इस नाम से बिहार में एक प्रंमडल है - मगध प्रमंडल मगध का
सर्वप्रथम उल्लेख अथर्ववेद में
मिलता है । इससे सूचित होता है कि प्राय: उत्तर
वैदिक काल तक मगध, आर्य सभ्यता के प्रभाव क्षेत्र के बाहर
था। अभियान चिन्तामणि के अनुसार मगध को कीकट कहा गया है । मगध बुद्धकालीन समय में
एक शक्तिशाली राजतन्त्रों में एक था । यह दक्षिणी बिहार में स्थित था जो कालान्तर में उत्तर भारत का सर्वाधिक शक्तिशाली महाजनपद बन गया । यह गौरवमयी इतिहास और
राजनीतिक एवं धार्मिकता का विश्व केन्द्र बन गया ।
मगध महाजनपद की सीमा उत्तर में गंगा से दक्षिण में विन्ध्य पर्वत तक, पूर्व में चम्पा से
पश्चिम में सोन नदी तक विस्तृत थीं । मगध का सर्वप्रथम उल्लेख से सूचित होता है
कि विश्वस्फटिक नामक राजा ने मगध में प्रथम बार वर्णों की परंपरा प्रचलित करके
आर्य सभ्यता का प्रचार किया था। वाजसेनीय संहिता में मागधों या मगध के चारणों का उल्लेख है। मगध की प्राचीन राजधानी राजगृह
थी । यह पाँच पहाड़ियों से घिरा नगर था । कालान्तर में मगध की राजधानी पाटलिपुत्र में स्थापित हुई । मगध राज्य में
तत्कालीन शक्तिशाली राज्य कौशल, वत्स
व अवन्ति को अपने जनपद में मिला लिया । इस प्रकार मगध का विस्तार अखण्ड भारत के
रूप में हो गया और प्राचीन मगध का इतिहास ही भारत का इतिहास बना ।
चौथी शती ई.पू. में मगध के शासक नंद थे। इनके बाद चन्द्रगुप्त मौर्य तथा अशोक के
राज्यकाल में मगध के प्रभावशाली राज्य की शक्ति अपने उच्चतम गौरव के शिखर पर
पहुंची हुई थी और मगध की राजधानी पाटलिपुत्र भारत भर की राजनीतिक सत्ता का केंद्र
बिंदु थी। मगध का महत्त्व इसके पश्चात् भी कई शतियों तक बना रहा और गुप्त काल के
प्रारंभ में काफ़ी समय तक गुप्त साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र ही में रही। जान पड़ता है कि कालिदास के समय (संभवत: 5वीं
शती ई.) में भी मगध की प्रतिष्ठा पूर्ववत् थी क्योंकि रघुवंश में इंदुमती के स्वयंवर के प्रसंग में मगधनरेश परंतप का भारत के सब राजाओं
में सर्वप्रथम उल्लेख किया गया है। इसी प्रसंग में मगध-नरेश की राजधानी को कालिदास
ने पुष्पपुर में बताया है।
गुप्त साम्राज्य की अवनति के
साथ-साथ ही मगध की प्रतिष्ठा भी कम हो चली और छठी-सातवीं शतियों के पश्चात् मगध
भारत का एक छोटा सा प्रांत मात्र रह गया। मध्यकाल में यह बिहार नामक प्रांत में
विलीन हो गया और मगध का पूर्व गौरव इतिहास का विषय बन गया। जैन साहित्य में अनेक स्थलों पर मगध तथा उसकी
राजधानी राजगृह (प्राकृत रायगिह) का उल्लेख है। कालान्तर
में मगध का उत्तरोत्तर विकास होता गया और मगध का इतिहास सम्पूर्ण भारतवर्ष का
इतिहास बन गया । बिम्बिसार ने हर्यक वंश की स्थापना 544 ई. पू. में की । इसके साथ ही
राजनीतिक शक्ति के रूप में बिहार का सर्वप्रथम उदय हुआ । बिम्बिसार को मगध साम्राज्य का वास्तविक
संस्थापक/राजा माना जाता है । बिम्बिसार ने गिरिव्रज (राजगीर)
को अपनी राजधानी बनायी । इसके वैवाहिक सम्बन्धों (कौशल, वैशाली एवं पंजाब) की नीति अपनाकर अपने साम्राज्य का विस्तार किया । यह
" मगध' नामक क्षेत्र मध्य बिहार का एक भौगोलिक क्षेत्र
हैं । राजनीतिक एवं प्रशासनिक मानचित्र में यह मुख्यत: मगध प्रमंडल के रूप में है
। इस मगध प्रमंडल के ज़िले हैं- गया, औरंगाबाद, जहानाबाद, नवादा । प्रमंडल का मुख्यालय गया में ही
है और यही है मगधांचल का सांस्कृति, राजनीतिक तथा व्यावसायिक
केन्द्र । बिहार राज्य और नेपाल के तराई क्षेत्र में बोली जाने वाली बिहारी भाषाओं में मागधी को मागधी प्राकृत का
आधुनिक प्रतिनिधि माना जाता है।
इस क्षेत्र में विभिन्न प्रकार की
कलाएं प्राचीनकाल से ही है और यही कालांतर में कलाकारों की रोजी-रोटी तथा व्यवसाय
का मुख्य साधन बनीं। हालांकि आधुनिक कलाओं, उत्पादों और
व्यवसायों से पारंपरिक व्यवसाय प्रभावित जरुर हुआ है, फिर भी
इन व्यवसायों एवं पारंपरिक उत्पादों का अपना महत्त्व एवं बाज़ार में पूछ भी है।
इसलिए यह कहना कि " आज के पारंपरिक उद्योगों पर संकट ही संकट है' पूर्णत: उचित नहीं है ।
हम अब मगध क्षेत्र के पारंपरिक
उद्योग से परिचित हो लें तथा इनसे जुड़े पारंपरिक व्यवसाय व्यापकता, वायपारिक घाटा लाभ, स्थानीय समस्याएं व उनके समाधान
तथा अन्य तकनीकि पक्षों पर भी न डालते चलें । यहाँ के प्रमुख पारंपरिक उद्योगों
में वस्र-उद्योग, मिष्टान्न उद्योग बांस से उत्पादित वस्तु
उद्योग, पाषाण एवं काष्ठ मूर्ति उद्योग, वाद्य यंत्र उद्योग, ऊन एवं कंबल उद्योग, हस्तकला के अन्य उद्योग, शराब एवं ताड़ी उद्योग तथा
गिट्टी उद्योग मुख्य हैं । उपरोक्त सभी पारंपरिक गुरु चेले वाले परंपरा चक्र से ही
चलते आ रहे हैं और इसी परंपरा के तहत इसमें आवश्यक अनावश्यक रुपांतरण होते रहे हैं
।
वृज्जि
उत्तर बिहार का बौद्ध कालीन गणराज्य जिसे बौद्ध साहित्य में
कहा गया है।
वास्तव में यह गणराज्य एक राज्य-संघ
का अंग था जिसके आठ अन्य सदस्य (अट्ठकुल) थे जिनमें विदेह, लिच्छवी तथा ज्ञातृकगण प्रसिद्ध थे।
वृजियों का उल्लेख पाणिनि में है।
कौटिल्य अर्थशास्त्र में वृजिकों को लिच्छविकों से भिन्न बताया गया है और वृजियों
के संघ का भी उल्लेख किया गया है।
बुद्ध के जीवनकाल में मगध सम्राट अजातशत्रु और वृज्जि गणराज्य में बहुत दिनों तक
संघर्ष चलता रहा।
महावग्ग के अनुसार अजातशत्रु के दो मन्त्रियों सुनिध और वर्षकार
(वस्सकार) ने पाटलिग्राम (पाटलिपुत्र) में एक क़िला
वृज्जियों के आक्रमणों को रोकने के लिए बनवाया था।
महापरिनिब्बान सुत्तन्त में
भी अजातशत्रु और वृज्जियों के विरोध का वर्णन है।
जैन तीर्थंकर महावीर वृज्जि
गणराज्य के ही राजकुमार थे।
चेदि महाजनपद
वर्तमान में बुंदेलखंड का इलाक़ा
इसके अर्न्तगत आता है। गंगा और नर्मदा के बीच के क्षेत्र का प्राचीन नाम चेदि था। बौद्ध ग्रंथों में जिन सोलह महाजनपदों का उल्लेख है उनमें यह भी था। कलिचुरि वंश ने भी यहाँ राज्य किया। किसी
समय शिशुपाल यहाँ का
प्रसिद्ध राजा था। उसका विवाह रुक्मिणी से होने वाला था कि श्रीकृष्ण ने रूक्मणी का
हरण कर दिया इसके बाद ही जब युधिष्ठर के राजसूय यज्ञमें श्रीकृष्ण को पहला स्थान
दिया तो शिशुपाल ने उनकी घोर निंदा की। इस पर श्रीकृष्ण ने उसका वध कर डाला। मध्य
प्रदेश का ग्वालियर क्षेत्र
में वर्तमान चंदेरी क़स्बा
ही प्राचीन काल के चेदि राज्य की राजधानी बताया जाता है।
मत्स्य महाजनपद
इसमें राजस्थान के अलवर, भरतपुर तथा जयपुर ज़िले के क्षेत्र शामिल थे। महाभारत काल का एक प्रसिद्ध जनपद जिसकी स्थिति
अलवर-जयपुर के परिवर्ती प्रदेश में मानी गई है। इस देश में विराट का राज था तथा वहाँ की राजधानी उपप्लव
नामक नगर में थी। विराट नगर मत्स्य
देश का दूसरा प्रमुख नगर था।
सहदेव ने
अपनी दिग्विजय-यात्रा में मत्स्य देश पर विजय प्राप्त की थी
भीम ने
भी मत्स्यों को विजित किया था।
अलवर
के एक भाग में शाल्व देश
था जो मत्स्य का पार्श्ववती जनपद था।
पांडवों ने
मत्स्य देश में विराट के यहाँ रह कर अपने अज्ञातवास का
एक वर्ष बिताया था।
मत्स्य निवासियों का सर्वप्रथम
उल्लेख ऋग्वेद में है
गांधार
पाकिस्तान का पश्चिमी तथा
अफ़ग़ानिस्तान का पूर्वी क्षेत्र। इसे आधुनिक कंदहार से जोड़ने की ग़लती कई बार
लोग कर देते हैं जो कि वास्तव में इस क्षेत्र से कुछ दक्षिण में स्थित था। इस
प्रदेश का मुख्य केन्द्र आधुनिक पेशावर और आसपास के इलाके थे। इस महाजनपद के प्रमुख नगर थे - पुरुषपुर (आधुनिक
पेशावर) तथा तक्षशिला इसकी
राजधानी थी । इसका अस्तित्व 600 ईसा पूर्व से 11वीं सदी तक रहा। कुषाण शासकों के दौरान यहाँ बौद्ध धर्म बहुत
फला फूला पर बाद में मुस्लिम आक्रमण के कारण इसका पतन हो गया।
कंबोज महाजनपद प्राचीन समय में भारतवर्ष के प्रमुख जनपदों में गिना जाता था। प्राचीन संस्कृत साहित्य में कंबोज देश या यहाँ के निवासी कांबोजों के विषय
में अनेक उल्लेख हैं, जिनसे जान पड़ता है कि कंबोज देश का
विस्तार स्थूल रूप से कश्मीर से हिन्दूकुश तक था।
वंश ब्राह्मण में कंबोज औपमन्यव नामक आचार्य का उल्लेख है।
यदि यह ब्लॉग आपको अच्छा लगे तो प्लीज कमेंट करें तथा मेरे ब्लॉग चैनल को सब्सक्राइब करें। धन्यवाद
Click here to subscribe
यदि यह ब्लॉग आपको अच्छा लगे तो प्लीज कमेंट करें तथा मेरे ब्लॉग चैनल को सब्सक्राइब करें। धन्यवाद
Click here to subscribe
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
Thank you for comment.