मगध साम्राज्य का उदय/उत्थान-
600 ईसा पूर्व में उत्तर भारत
में 16 महाजनपदों का
उदय हुआ। एवं द्वितीय नगरीकरण की शुरुआत हुई। इन 16 महाजनपदों में से अंतिम रूप से मगध सफल रहा और उसने अन्य महाजनपदों
को मिलाकर के एक विशाल साम्राज्य का निर्माण किया।
मगध
साम्राज्य के उदय एवं विकास के लिए निम्न कारण उत्तरदायी थे-
1. मगध की राजधानी
राजगृह/ पाटलिपुत्र का चारों ओर से प्राकृतिक पहाड़ियों से घिरा होना।
2. मगध क्षेत्र की
भूमि का उर्वर एवम उपजाऊ होना।
3. मगज में लोहे की
खानों की उपलब्धता।
4. मगध में हाथियों
की उपलब्धता।
5. मगध में घने
जंगलों की उपलब्धता एवं इससे कोयले की उपलब्धता।
6. मगध की आर्थिक
स्थिति सुदृढ़ होना।
7. मगध को
शक्तिशाली राजाओं का संरक्षण प्राप्त होना जैसे-
बिंबिसार, अजातशत्रु, शिशुनाग, महापद्मनंद आदि।
नोट- मगध का सबसे पहले उल्लेख अथर्ववेद में मिलता है।
मगध के
सबसे प्राचीन वंश के संस्थापक बृहदरथ था उसकी राजधानी
गिरिब्रज/राजगृह थी।
मगध साम्राज्य का विकास- मगध साम्राज्य के विकास में तीन राजवंशों का
योगदान है-
1.
हर्यक वंश,
2. शिशुनाग वंश, 3. नंद वंश।
A. हर्यक वंश-(544- 412 ईसा पूर्व)- मगध पर सर्वप्रथम हर्यक वंश का शासन स्थापित
हुआ। जिसने मगध साम्राज्यवादी नीति को
प्रारंभ किया। हर्यक वंश को पितृ हंता वंश भी कहा जाता है।
1. बिंबिसार (544-492
ईसा पूर्व)- हर्यक वंश का
संस्थापक बिंबिसार था। इसने मगध की
प्रारंभिक राजधानी राजगृह की स्थापना की।
बिंबिसार ने अपने राजवैद्य जीवक को अवंती के शासक चंड प्रद्योत की
पीलिया नामक बीमारी का इलाज करने के लिए भेजा एवं मित्रता स्थापित की।
बिंबिसार ने युद्ध एवं वैवाहिक संबंधों से मगध
साम्राज्य का विस्तार किया। युद्ध के द्वारा अंग राज्य को अपने साम्राज्य
में मिलाया।
वैवाहिक संबंधों द्वारा निम्न तीन राजवंशो
में विवाह किया-
1. लिच्छवि
वंश- लिच्छवि
शासक
चेटक की पुत्री चेलना के साथ विवाह
किया।
2.
कौशल वंश- बिंबिसार ने कौशल नरेश प्रसेनजीत की बहन
महाकौशल के साथ विवाह किया एवं इस विवाह के परिणाम
स्वरुप काशी का राज्य बिंबिसार को प्राप्त हुआ।
3. मद्र
राज्य- बिंबिसार ने मद्र
राज्य
की राजकुमारी क्षेमा के साथ विवाह किया।
नोट- बिंबिसार को
साहित्य
में क्षेणिक कहा गया है।
बिंबिसार
बुद्ध एवं महावीर स्वामी का समकालीन था।
2. आजातशत्रु (492-460 ईसा पूर्व)- इसने अपने पिता की हत्या करके राजगद्दी
प्राप्त की।
साहित्य में इस को कुणिक कहा गया है। इसके काल
में काशी के राज्यों को लेकर के कौशल नरेश
प्रसेनजित तथा आजातशत्रु के मध्य युद्ध की स्थिति उत्पन्न हुई किंतु दोनों के मध्य
मित्रता हो गई और प्रसेनजित ने अपनी पुत्री वजीरा का विवाह आजातशत्रु से कर दिया। आजातशत्रु ने वज्जि संघ में फूट डलवाने के लिए
अपने मंत्री वस्स्कर
को
भेजा और आजातशत्रु ने वज्जि संघ को पराजित
करके मगध साम्राज्य में मिला लिया। इसी युद्ध के दौरान आजातशत्रु ने पहली बार
रथमूसल एवं महा शीला कंटक हत्यार का प्रयोग किया
नोट-
आजातशत्रु और बिंबिसार जैन
एवं बौद्ध दोनों मतों के अनुयायी थे। पाटलिपुत्र
की नीव अजातशत्रु ने रखी।
3. उदायिन (460-445 ईसा पूर्व)- उदायिन ने अपने पिता आजातशत्रु की हत्या की।
उदायिन ने गंगा एवं सोन नदियों के मध्य पाटलिपुत्र नामक नगर बसाया तथा पाटलिपुत्र
को मगध की दूसरी राजधानी बनाई।
इसके पश्चात क्रम से अनिरुद्ध, मुंडक
व
नागदशक ने शासन किया और नागदशक की हत्या करके शिशुनाग ने
शिशुनाग वंश की स्थापना की।
शिशुनाग वंश (412-344 ईसा पूर्व)-
शिशुनाग
(412-394 ईसा पूर्व)-
इस वंश का संस्थापक शिशुनाग था जिसकी निम्न
उपलब्धि थी।
शिशुनाग ने वैशाली को मगध की तीसरी राजधानी बनाया।
शिशुनाग ने
अवंति तथा वत्स राज्य को हराकर मगध
साम्राज्य में मिलाया।
कालाशोक (394-366 ईसा पूर्व)- कालाशोक ने
वैशाली से हटाकर पाटलिपुत्र को मगध की स्थाई राजधानी बनाया संपूर्ण जो
सम्पूर्ण काल में मगध की राजधानी रही।
इसके काल में वैशाली में द्वितीय
बौद्ध संगीति का आयोजन हुआ।
शिशुनाग वंश का अंतिम शासक नदीवर्धन
(महानंदी)
था।
नंद वंश (344-322 ईसा पूर्व322)
शिशुनाग वंश के पश्चात महानंदिन ने मगध में नंद
वंश की स्थापना की। महापदम नंदन ने इसकी हत्या करके मगध में नंद वंश को आगे बढ़ाया।
महापद्मनन्द मगध का वीर और
प्रतापी राजा था। उसने मगध के नन्द
वंश की स्थापना की थी। महापद्मनन्द को 'उग्रसेन' नाम से भी जाना जाता है। उसका जन्म शिशुनाग
वंश के अंतिम राजा महानंदी की दासी के गर्भ से हुआ था और उसने महानंदी की
हत्या करके मगध की राजगद्दी पर अधिकार कर लिया था।
·
एक विस्तृत राज्य की
महत्त्वाकांक्षा के कारण राजा महापद्मनन्द ने समकालीन अनेक छोटे-बडे़ स्वतन्त्र
राज्यों को विजित कर अपने शासन में शामिल किया था।
·
इन सभी विजयों के कारण राजा महापद्मनन्द
को पुराणों में 'अखिलक्षत्रांतक' और 'एकच्छत्र'
के रूप में वर्णित किया गया है।
·
महापद्मनन्द ने मिथिला, कलिंग, काशी, पांचाल, चेदि, कुरु, आदि विभिन्न राज्यों को अपने शासन के अंतर्गत कर शूरसेन राज्य को भी
जीत कर अपने विशाल राज्य में सम्मिलित कर लिया था।
·
संभवत: ईसवी पूर्व 400 के लगभग महापद्मनन्द का शासन रहा था।
·
महापद्मनन्द के पश्चात् उसके
विभिन्न पुत्रों ने मगध राज्य पर शासन
किया।
·
उत्तरी-पश्चिमी भारत पर संभवतः ईसवी
पूर्व 327
में सिकन्दर ने आक्रमण किया, परन्तु सिकन्दर की सेना पंजाब से आगे न बढ़
सकी।
·
जब सिकन्दर की सेना को यह पता चल
गया कि आगे मगध शासक की विस्तृत सेना है, तो सिकन्दर के
सैनिकों ने व्यास
नदी को पार कर आगे बढ़ने से मना कर दिया।
महापद्मनंद (उग्रसेन)- महापदम नंदन को पुराणों में सर्वक्षत्राहंतक
(क्षत्रियों
का नाश करने वाला) तथा भार्गव की उपाधि
दी गई।
खारवेल
का हाथीगुंफा अभिलेख के अनुसार महापद्मनंद ने कलिंग पर आक्रमण किया एवं कलिंग
को जीतकर
मगध साम्राज्य में मिलाया तथा कलिंग में एक नहर का निर्माण करवाया जो प्राचीन भारत में नहर निर्माण का
प्रथम उदाहरण है।
महापद्मनंदन को उत्तर भारत का प्रथम ऐतिहासिक
सम्राट कहा जाता है, क्योंकि वह पहला शासक था जिसने संपूर्ण उत्तर
भारत को जीता एवं एकरात की उपाधि धारण
की। महापदम नंदन को बौद्ध ग्रंथों में उग्रसेन (भयंकर सेना का स्वामी) कहा गया है।
धनानंद- यह नंद वंश का अंतिम शासक था इसी के शासन काल
में 326 ईसापूर्व में भारत पर सिकंदर का आक्रमण हुआ धन नन्द को हटाकर के
चंद्रगुप्त मौर्य ने मगध में मौर्य वंश की स्थापना की।
मौर्य वंश (322-184 ईसा पूर्व)-
मौर्य
वंश की जानकारी के स्रोत-
1-
कौटिल्य का अर्थशास्त्र।
2-
मेगस्थनीज की इंडिका।
3-
अशोक के अभिलेख।
1- कौटिल्य
अर्थशास्त्र- कोटिल्य चंद्रगुप्त
मौर्य का प्रधानमंत्री, पुरोहित एवं सलाहकार था जिसको विष्णुगुप्त,
चाणक्य
भी कहा जाता है। कौटिल्य ने अर्थशास्त्र
नामक प्रसिद्ध पुस्तक की रचना की,
जो
लोग प्रशासन एवं राजनीतिक शास्त्र पर लिखी गई पहली रचना थी। अर्थशास्त्र में 15 अध्याय है एवं यह तृतीय
पुरुष शैली में लिखी गई प्रथम रचना थी।
अर्थशास्त्र का सर्वप्रथम प्रकाशन 1909 डॉक्टर
श्याम शास्त्री द्वारा किया गया। अर्थशास्त्र में हमें चंद्रगुप्त मौर्य की
प्रशासनिक व्यवस्था की जानकारी मिलती है।
नोट- लोह विजय के सिद्धांत का प्रतिपादन कौटिल्य ने
किया।
2- मेगस्थनीज
की इंडिका- मेगस्थनीज यूनानी शासक
सेल्यूकस निकेटर का राजदूत था। मेगास्थनीज ने चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में रहकर
इंडिका नामक प्रसिद्ध पुस्तक की रचना की। जिससे हमें चंद्रगुप्त मौर्य की
प्रशासनिक एवं सांस्कृतिक स्थिति के बारे में जानकारी मिलती है। मेगस्थनीज 304 से
299 ईसापूर्व तक चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में रहा। यद्यपि Indica
अपने
मूल रूप में समाप्त हो चुकी है किंतु इसके उदाहरण बाद कि उन्होंने लिखो जैसे एरियन,
पिलनी,
जस्टिन
आदि की पुस्तकों में मिलता है।
नोट- इंडिका एक अन्य यूनानी लेखक एरियन की भी रचना मानी जाती है।
3- अशोक
के अभिलेख- अशोक के बारे में जानकारी
के एकमात्र स्रोत उसके अभिलेख है जो साम्राज्य के अलग-अलग भागों से प्राप्त हुए
हैं।
डी. आर. भंडारकर ने केवल अभिलेखों के आधार पर
ही अशोक का संपूर्ण इतिहास लिखा। अशोक के अभिलेखों को सर्वप्रथम पढ़ने का श्रेय
जेम्स प्रिंसेप 1837 को जाता है।
अशोक के अभिलेखों में 4 लिपियों का पूरा हुआ है
1 ब्राह्मी लिपि,
2 खरोष्ठी लिपि, 3 आरमाईक
लिपि, 4
यूनानी लिपि।
अशोक
के अधिकांश अभिलेख ब्राह्मी लिपि में है
अशोक
के अभिलेखों में दो भाषाओं का प्रयोग हुआ है 1
प्राकृत भाषा 2 यूनानी भाषा। किंतु अधिकांश अभिलेख प्राकृत भाषा में लिखे
हुए हैं।
खरोष्ठी
लिपि- मनसेरा ( हजारा पाकिस्तान), शाहबाजगढ़ी (पेशावर पाक) से प्राप्त हुई है। यह दाएं से बाएं और लिखी
जाती है।
ग्रीक
यूनानी लिपि और आरामाइक लिपि- सार- ए-
कुंजा अभिलेख द्विभाषी है यहां का काबुल
नदी
के किनारे जलालाबाद के पास से प्राप्त हुआ। लघमा
शिलालेख आरमाईक लिपि का है।
मौर्य काल भाग 2
Veery good
जवाब देंहटाएं