सिंधु घाटी सभ्यता 3500-1500 ई0 पू0
नामकरण
हड़प्पा सभ्यताः- क्योंकि खोजा
गया पहला स्थल था।
ऽ सिंधु घाटी सभ्यताः- यह नाम जाॅन मार्शल ने दिया।
ऽ सिंधु सरस्वती सभ्यताः- अधिकांश नगर सिंधु व सरस्वती नदी के मध्य
स्थित हैं।
ऽ कास्य युगीन सभ्यताः- इस सभ्यता के लोगो द्वारा प्रयोग में लाई गई
पहली धातु कास्य थी।
ऽ पहली नगरीय सभ्यताः- पहली बार नगरों के प्रमाण मिले।
ऽ प्रथम नगरीय क्रांति।
सिंधु घाटी सभ्यता के निर्माताः- चार प्रजातियों का योगदान
1 प्रोटो आस्ट्रालाइड प्रजातिः- वर्तमान मेें यह प्रजाति मध्य भारत
में निवास करती हैं।
2 भू-मध्य सागरीय प्रजातिः- इसको द्रविड़ प्रजाति भी कहा जाता है।
इसी को सिंधु घाटी सभ्यता का मूल निवासी कहा जाता है। यह प्रजाति वर्तमान में
दक्षिण भारत में निवास करती हैं।
3 मंगोलाई प्रजातिः- वर्तमान में हिमालय के तराई क्षेत्र में निवास
करती हैं।
4 अल्पाइन प्रजातिः- वर्तमान में पश्चिमी भारत में निवास करती हैं।
नोट भारतीय पुरातत्व का
जनकअलेक्जैंडर कनिघंम
सिंधु घाटी
सभ्यता का उद्भव/उत्पत्ति
विदेशी
मतः- इस मत के समर्थक सर जाॅन मार्शल,
याल्डन चावल, मार्टीमर ह्वीलर, एच डी सांकलिया, डी डी कौशम्बी आदि थे।
इस मत के अनुसार सिंधु सभ्यता
का निर्माण सुमेरियन सभ्यता के लोगो द्वारा किया गया। क्योंकि दोनो सभ्यताओं में
काफी समानताएं थी- जैसेः- दोनो जगह नगरों का अस्तिव, लिपि का प्रयोग, सड़कों का निमार्ण, मुहरों का प्रयोग एवं धार्मिक विश्वास एक
समान थे।
देशी
उत्पति का मत
इस मत के समर्थक रोमिला थापर,
डी पी अग्रवाल, (आल्थिन, फेयर सर्विस विदेशी) आदि थे।
इस मत के अनुसार सिंधु सभ्यता
का निर्माण सुमेरिया सभ्यता द्वारा नही बल्कि भारत की स्थानीय संस्कृतियों जैसेः-
नाल, कुल्ली,
सोथी, आमरी आदि संस्कृतियों ने मिलकर
के सिंधु घाटी सभ्यता का निर्माण किया है। यही मत सर्वाधिक मान्य हैं।
सिंधु घाटी
सभ्यता का विस्तार तीन देशों में हैं।
1. अफगानिस्तान 1. शोर्तूगोई, 2. मूण्डीगाक
2. पाकिस्तान ब्लूचिस्तान
1. सुत्काजेंडोर,
2. सुतकाकोट, 3. डाबर कोट 4. बालाकोट
सिंध 1. मोहनजोदड़ो, 2.चन्हुदड़ो, 3. जुनेरजोदड़, 4. अमरी, 5. कोटदीजी
पंजाब 1. हड़प्पा
3. भारत
गुजराज1. धोलावीरा, 2. लोथल, 3. सुरकोटड़ा, 4. भगतराव 5. प्रमास पाटन,6 रंगपुर
राजस्थान कालीबंगा
महाराष्ट्रर देमाबाद
J&K माण्डी
हरियाणा 1. राखीगढ़, 2.़ बनवली, 3. मिताथल
यू0 पी01. आलमगीरपुर, 2. देरास्माइल 3. रहमानढेरीं
ऽ सिंधु घाटी सभ्यता का विस्तार त्रिभुज की
आकृति को लिये हुए हैं।
ऽ सिंधु घाटी का सबसे पूर्वी स्थल आलमगीर पुर,
उत्तर प्रदेश के मैरठ
जिलें की हिण्डन नदी के तट पर हैं।
ऽ इसका सबसे पश्चिमी स्थल पाकिस्तान के
बलुचिस्तान में दास्क नदी के तट पर सुतकाजेंडोर हैं।
ऽ इसका सबसे उत्तरी स्थल जम्मू में चिनाब नदी
के तट पर माण्डा हैं।
ऽ इसका सबसे दक्षिणी स्थल महाराष्ट्र में
गोदावरी नदी के तट पर दैमाबाद हैं।
ऽ सिंधु घाटी सभ्यता की उत्तर से दक्षिण स्थल
की लम्बाई 1400 किमी
तथा पूर्व से पश्चिमी की लम्बाई 1600 किमी हैं। एवं तटीय लम्बाई 1300 किमी हैं।
सिंधु घाटी सभ्यता का कालक्रम
क्र0स0 विद्वान तिथि/समय
1. माधोस्वरूप वत्स 3500 - 2700 ठब्
2. सर जाॅन मार्शल 3250 - 2750 ठब्
3. अनेस्ट मैके 2800 - 2500 ठब्
4. मोर्टिमर ह्वीलर 2350 - 1750 ठब्
5. कार्बन 14 पद्धति 2350 - 1750 ठब्
6. डी पी अग्रवाल व रोमिला थापर 2300 - 1700 ठब्
सिंधु घाटी सभ्यता का नगर
नियोजन
सिंधु घाटी सभ्यता विश्व में अपने उत्कष्र्ट
नगर नियोजन के लिए जानी जाती है, जिसकी निम्न विशेषताएं हैं।
1 सिंधु घाटी सभ्यता के नगर अत्यंत व्यवस्थित
थे एवं जाल पद्धति का निर्माण करते थे। जिसे ग्रिड पद्धति, चैस बोर्ड पद्धति इत्यादि के नाम से जाना
जाता हैं।
2 सिंधु घाटी सभ्यता के नगर दो भागो मे वर्गीकृत थे
पश्चिमी भाग, दुर्ग/किला, विशेष वर्ग पूर्वी भाग,
साधारण वर्ग
पश्चिमी
भाग इसको पश्चिमी टीला, दुर्ग
या किला भी कहा जाता हैं। यह चारों ओर से दिवार से गिरा हुआ था।
पूर्वी
भाग इसको पूर्वी टीला, सामान्य,
आवासीय नगर कहा जाता था।
यह दुर्गीकृत नही था।
पश्चिमी भाग व पूर्वी भाग में अन्तर
क्र0स0 पश्चिमी भाग पूर्वी भाग
1. इसका निर्माण अपेक्षाकृत ऊँचाई
व चबुतरे पर किया गया है। जबकि इसका
निर्माण धरातल पर किया गया है।
2. इस भाग में नगर विशिष्ट वर्ग
जैसे पुरोहित, मध्यम
वर्ग, प्रशासनिक
वर्ग इत्यादि निवास करते थे। इस भाग में नगर
का निम्न वर्ग निवास करता था- किसान, मजदूर श्रमिक आदि।
3. इसका क्षेत्रफल कम था। इसका क्षेत्रफल ज्यादा था।
नोट
ऽ कालीबंगा एक मात्र ऐसा नगर था जिसके दोनो
भाग रक्षा प्राचीर से गिरा हुआ था। जैसेपश्चिमी पूर्वी
ऽ लोथल एवं सुरकोटड़ा दो ऐसे नगर थे जिसके दोनो
भाग एक ही रक्षा प्राचीर से गिरे हुए थे।
पश्चिमी पूर्वी
ऽ चुन्हुदड़ो एक मात्र ऐसा नगर था जिसका कोई भी
भाग दुर्गीकृत नहीं है।
ऽ धोलावीरा तीन भागों में बंटा हुआ था। पश्चिमी
मध्य पूर्वी
सिंधु घाटी सभ्यता के लोग लेखन कला से परिचित थे,
एवं उनकी लिपि चित्राक्षर
लिपि कहलाती है, जिसमें
भावों को व्यक्त करने के लिए शब्दों के स्थान पर चित्रों का प्रयोग हुआ हैं। यह
लिपि प्रारम्भ में दांयी से बाई ओर तथा पुनः बाई से दांयी ओर लिखी गई हैं। एवं इस
पद्धति को बुस्त्रोफेदन/ सर्पिलाकार एवं वलयाकार पद्धति भी कहा जा सकता है जो
वर्तमान में खरोष्ठी लिपि के समान हैं।
सिंधु घाटी सभ्यता के मकान एवं
भवनों में कच्ची एवं पक्की दोनो ईंटों का प्रयोग हुआ हैं जिनका सामान्य अनुपात 4ः2ः1 हैं एवं अलंकृत ईंटों का एकमात्र प्रमाण कालीबंगा
से प्राप्त हुए हैं।
सबसे
बड़ी ईंट मोहन जोदड़ो से मिली है।
नोट
रंगपुर एवं कालीबंगा दो ऐसे नगर है जो पूर्णतः कच्ची ईंटों से निर्मित हैं।
श्वाधान
की पद्धति तीन प्रकार की थी।
1ण् पूर्ण श्वाधानइसमें मृत के शरीर को पूर्ण रूप
से दफना दिया जाता था। एवं उसके साथ उसके दैनिक उपयोग की वस्तुए रख दी जाती थी जो
कि उसके पूनर्जन्म में विश्वास का प्रतीक थी।
2ण् आंशिक श्वाधानइस पद्धति मे मृत शरीर को खुले
में छोड़ दिया जाता था एवं जीव जंतुओ के खाने के पश्चात शेष अवशेषों को दफना दिया
जाता थामोहनजोदड़ो।
3ण् दाह संस्कार इसमें मृत शरीर को पूर्णतः जला
दिया जाता था एवं शेष अवशेषों को एक घड़े में रख कर दफना दिया जाता था। इसलिए इस
पद्धति को कलश श्वाधान भी कहा जाता था।
नोट
कालिबंगाा एकमात्र ऐसा नगर था जहां से श्वाधान की तीनों पद्धतियों के प्रमाण मिले
है और इस दौरान मृत शरीर का सिर सामान्य दक्षिण से उत्तर की ओर रखा जाता था।
महत्त्वपूर्ण
नगर
1.हड़प्पा
यह पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के मोंटगोमरी जिले के रावी नदी के बांये तट पर स्थित
है। वर्तमान जिला
शाहीवाल।
इसकी
खोज सर जाॅन मार्शल के निर्देशन मे 1921 में दयाराम सहानी द्वारा की गई।
यहां
से निम्न वस्तुएं प्राप्त हुई
ऽ अन्नागार के साक्ष्य- 6
ऽ स्त्री के गर्भ से पौधा निकलते हुए मिट्टी
की मुर्ति जिसे मार्शल ने मातृदेवी की संज्ञा दी।
ऽ श्रमिक एवं कर्मचारी आवास (दास प्रथा)
ऽ वृताकार चबुतरे
ऽ पाषाण की पुरूष नर्तक की मुर्ति
ऽ तांबे की ईक्का गाड़ी
ऽ कब्रिस्ताान के साक्ष्य- समाधि त् 37 व कब्रिस्तान भ्
ऽ काँसा गलाने का पात्र
ऽ स्वास्तिक चिह्न
ऽ नग्न पुरूष का धड़
नोट
हड़प्पा के टीले की ओर सर्वप्रथम प्रकाश 1826 में चाल्र्स मैशन न डाला। तथा 186 में लाहौर से कराची के मध्य
रेल पटरी के निर्माण के समय जोन ब्रटन व विलियम ब्रटन ने हड़प्पा के टीले की ईंटों
का सर्वप्रथम प्रयोग किया।
2. मोहनजोदड़ो
(नखलिस्तान)
ऽ मोहनजोदड़ो पाकिस्तान के सिंध प्रांत के
लरकाना जिले में सिंधु न्दी के दांये तट पर स्थित है।
ऽ इसकी खोज सर जाॅन मार्शल के निर्देशन मे 1922 में रखालदास बनर्जी द्वारा की
गई।
ऽ मोहन जोदड़ो का शाब्दिक अर्थ मृतकों का टीला
है।
ऽ मोहन जोदड़ो से स्तुप/टीले के साक्ष्य मिले
हैं, जहा पर कुषाण
शासक कनिष्क ने स्तुप का निर्माण करवाया।
ऽ यह एकमात्र ऐसा नगर है जहां सभ्यता के 7 स्तर मिले है। अर्थात यह नगर 7 बार बना व 7 बार उजड़ा।
नोटहड़प्पा
व मोहन जोदड़ो को सिंधु सभ्यता की दो जुड़वा राजधानियां पीग्गाट ने कहा।
यहां
से निम्न वस्तुएं प्राप्त हुई
ऽ विशाल अन्नागार।
ऽ विशाल स्नानागार।
ऽ पुरोहित आवाश्स।
ऽ महाविद्यालय भवन एव सभाभवन।
ऽ पाशुपति शिव की मूर्ति, जिसको मार्शल ने आदि शिव की
संज्ञा दी।
ऽ रंगाई छपाई के कुण्ड एवं वस्त्र रंगाई का
कारखाना।
ऽ काँसें की नर्तकी मूर्ति।
ऽ पाषाण की योगी की मूर्ति।
नोट
मोहन जोदड़ो से कंकाल के साक्ष्य नही मिले है। किन्तु यहां से सर्वाधिक नर कंकाल
मिले है।
3. चुन्हुदड़ो
ऽ यह पाकिस्तान में सिंध प्रांत के सिंधु नदी
के दांये तट पर हैं। इसकी खोज 1931 में छण्ळण् मजुमदार के द्वारा की गई है।
महत्वपूर्ण
अवशेष
ऽ मनके बनाने का कारखाना।
ऽ सौन्दर्य प्रसाधन केन्द्र, काजल, कंघा, लिपिस्टिक के प्रमाण।
ऽ बिल्लि का पीछा करते हुए कुत्ते के पैरो
वाली मुद्रा के अवशेष।
4. कालीबंगा
ऽ कालीबंगा राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में
हैं।
ऽ कालीबंगा की खोज सन् 1951 में अमलानन्द घोष द्वारा की गई।
किंतु बाद में ठण्ठण् लाल व ठण्ज्ञण् थापर के नेतृत्व में इसका उत्खनन कार्य पूर्ण
हुआ।
ऽ कालीबंगा का शाब्दिक अर्थ हैं काले रंग की
चुड़िया।
ऽ कालीबंगा एकमात्र ऐसा नगर है, जहां के भवन एवं ईमारते कच्ची
ईंटों से निर्मित हैं।
महत्वपूर्ण
अवशेष
ऽ जूते हुए खेत के साक्ष्य।
ऽ दो फसलों को एक साथ बोए जाने के साक्ष्य।
ऽ अग्नि कुण्ड/ अग्नि वेदिकाएं/ हवन कुण्ड के
साक्ष्य।
ऽ युग्म श्वाधान के साक्ष्य।
ऽ शल्य क्रिया के प्राचीनतम साक्ष्य।
ऽ भूकम्प के प्राचीनतम साक्ष्य।
ऽ एकमात्र बेलनाकार मुहर के साक्ष्य।
5. लोथलयह
गुजरात के अहमदाबाद जिले में स्थित हैं। इसकी खोज 1957 में एस. आर. राव के द्वारा की गई।
ऽ यह एक मात्र नगर था जहां से विदेशी व्यापार
के साक्ष्य मिले हैं।
महत्वपूर्ण
अवशेष
ऽ बन्दरगाह/ डाॅकयार्ड/ गोदीबाड़ा के साक्ष्य।
ऽ तीन युग्म श्वाधान के साक्ष्य।
ऽ अग्नि कुण्ड के साक्ष्य।
ऽ चावल की भूसी एवं बाजरा के साक्ष्य।
ऽ पंचतंत्र की कहानी वाली चालाक लौमड़ी की
मुद्रा।
ऽ मनके का कारखाना।
ऽ फारस की मोहर।
यह
सिंधु घाटी का एक मात्र नगर था जिसके खिडकियां एवं दरवाजे मुख्य सड़क की ओर खुलते
थे।
6. धोलावीरा(सबसे
बड़ा नगर) इसका शाब्दिक अर्थ हैं, सफेद रंग का कुआ।
ऽ यह गुजरात के कच्छ जिले में मानसर व मानहर
नदियों के मध्य स्थित हैं।
ऽ इसकी खोज 1967-68 में जगपति जोशी (श्रण्च्ण्श्रवेीप) के
द्वारा की गई।
ऽ यह एकमात्र ऐसा नगर है जिसकी बनावट आयताकार
है, जो तीन भागों
में बंटा हुआ हैं। इसके मध्य भाग में अधिकारी वर्ग निवास करते थें। पश्चिम
मध्य पूर्व दो भाग किले के अन्दर
व एक बाहर
महत्वपूर्ण
अवशेषसिंधु घाटी सभ्यता का सामाजिक जीवन
ऽ विशाल स्टेडियम के साक्ष्य (खेल का मेदान)।
ऽ गिरा हुआ सूचना पट्ट
ऽ जल श्रेष्ठ जन संग्रहण प्रणाली (बाँध
निर्माण के साक्ष्य)
ऽ स्थापथ्य की दृष्टि से सिंधु घाटी सभ्यता
में सबसे श्रेष्ठ नगर माना गया।
सिंधु
घाटी सभ्यता का सामाजिक जीवन
1.वर्ग
ऽ उच्च वर्ग पुरोहित, अधिकारी
ये लोग नगर के पश्चिमी भाग में रहते थे।
ऽ मध्यम वर्ग व्यापारी
ऽ निम्न वर्ग किसान, श्रमिक ये लोग नगर के पूर्वी भाग में रहते
थे।
2. परिवार
व समाज का स्वरूप
ऽ एकल परिवार प्रथा।
ऽ मातृ सत्तात्मक समाज।
3. महिलाओं
की स्थिति
ऽ श्रेष्ठ थी।
ऽ मातृदेवी की मिट्टी की मुर्तियां मिली।
4. रहन-सहन
की स्थिति
ऽ शाकाहारी व मांसाहारी थे।
ऽ आभूषणों के शौकिन थे। (मनकों से निर्मित)
नोट
सिन्दुर के साक्ष्य- नौसारी
श्रृंगारदान-
हड़प्पा
काजल,
कंघा, लिपिस्टिक- चुन्हुदड़ों
सिंधु
घाटी सभ्यता का आर्थिक जीवन
1. कृषिये
लोग कृषि कार्यो से परिचित थे। जुते हुए खेत के साक्ष्य कालीबंगा एवं मिट्टी का हल
बनावली से मिले। गन्ने से परिचित नही थे।
ऽ चावल के साक्ष्य रंगपुर एवं लोथल से मिले।
ऽ बाजरे के साक्ष्य लोथल से मिले।
ऽ कपास के साक्ष्य मेहरगढ़ से मिले। नोटकपास
इनकी प्रिय फसल थी।
2. पशुपालन
घोड़े से परिचित नही थे। लेकिन घोड़े के अवशेष मिले हैं। सुरकोटड़ा गुजरात से घोड़े के अस्तिपंजर।
रानाथुन्ड़ई ब्लूचिस्तान से
घोड़े का दांत
नोटपशुपालन
के पराचीनतम साक्ष्य आहड़ से मिले हैं।
सिंधुवासी लौहे से अनभिज्ञ थे।
3. व्यापार
वाणिज्य इस सभ्यता के लोग व्यापार से परिचित थे एवं आंतरिक एवं बाहरी दोनो व्यापार
प्रचलित थे।
ऽ बाहरी व्यापारबाहरी व्यापार के साक्ष्य
निम्न क्षेत्रो से प्राप्त हुए
पारस
की मोहरलोथल
बेलनाकार
मोहर कालीबंगा
ममी
के साक्ष्य लोथल
मैसोपोटामिया
के साक्ष्य में मेलूहा, ठिलमून
एवं मगन का उल्लेख हुआ है जिसमें मेलूहा की पहचान सिंधु क्षेत्र, ठिलमून की पहचान बहरीन से एव
मगन की पहचान ओमान तट से की गई है।
सिंधु
घाटी सभ्यता के पतन के कारण
कारण विद्वान
बाढ़
के कारण मार्शल, मैके, एस. आर. राव,
जलवायु
परिवर्तन अमलानन्द घोष
भूकम्प
एवं नदियों के मार्ग परिवर्तन के कारण एम.
आर. साहनी, राईक्स
महामारी
(मलेरिया) यू. आर. केनेडी
अदृश्य
गाज एम. दिमित्रिवेन
सिंधु
घाटी के लोगो द्वारा विज्ञान एवं तकनीकी के प्रति नकारात्मक दृष्टि कोण -
बाहरी
आक्रमण (आर्य) गार्डन चाइन्ड व छिलर
नोट
सिंधु
घाटी सभ्यता की सर्वाधिक देन- धार्मिक क्षेत्र।
सिंधु
सभ्यता का सबसे बड़ा नगर मोहन जोदड़ो है एवं भारत में खोजा गया सबसे बड़ा सिंधु स्थल-
राखीगढ़ है तथा हड़प्पा सभ्यता का सबसे बड़ा नगर धोलावीरा गुजरात हैं।
रंगपुर-
15 अगस्त 1947 के बाद खोजा गया प्रथम नगर।
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